साथी वो जो छूट गये
1 min readOct 11, 2017
निकले थे जो संग में अपने
साथी वो कुछ छूट गए
कुछ मिले सहज़ चलते फिरते
कुछ बिछड़ गए जुड़ते जुड़ते
कुछ बात नहीं अब करते हैं
कुछ हम भी थोड़ा अकड़ते हैं
कुछ उनकी भी मजबूरी थी
कुछ तो सीना ज़ोरी थी
जो बातें वो सब होती थी
कुछ कहती थी, कुछ सुनती थी
कुछ शब्द कहीं जो कम पड़ते
वो नज़रें पूरा करती थी
वो लोग कहीं जो छूटे हैं
यादों में अब भी आते हैं
बहते बहते हवा संग
कोने में किसी टकराते हैं
सवाल है ये, उम्मीद भी की
चलते फिरते जब मिलेंगे वो
शब्दों से तो सब करते हैं
नज़रों से भी बतला लेंगें?
यादों की उलझी हुई गुत्थी
क्या बातों से सुलझा लेंगे!