शुभ दीपावली

दीवाली के उजाले में,
धन की बहार में,
खो गयी मासूमियत
पटाकों के धमाकों में!
भूल ना जाना उस मासूम को,
जो तुम्हारी गली में…रोटी के लिए बिलख रहा होगा,
रात के वीराने में एक बार निकल के देखना,
इस उजाले में आज भी कितना अंधेरा है!!
(Had written this poem in 2009 after I had gone to see the magnificent lighting in Lucknow and saw some kids collecting the left over food from roads.)